28.7.08

जिंदगी इल्तजा है एक मेरी, सुन तो ले
उल्फत का लम्हा एक उनसे तो होने दे
फिर शिकवा न होगा मुकद्दर चाहे किस राह बुला ले ...
तनहायी के कोहरे में उस पल से शमा रौशन कर लेंगे ।

खुदा का इनायत रही तो
इंतजार जो प्यार का दस्तूर है
उस बाज़ी भी वक़्त से जीत लेंगे
धडकनों के लफ्जों से रूटे सनम को मना लेंगे.

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